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Potato production

सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

सीड प्लॉट तकनीक से गुणवत्तापूर्ण आलू बीज एवं बेहतरीन उत्पादन हांसिल करें

यदि आप सब्जियों का उत्पादन करते हैं, तो ऐसे में आप गुणवत्तापूर्ण आलू बीज और अच्छी उपज पाने के लिए अपनाएं ये सर्वोत्तम तकनीक जो देगी कम समय में ज्यादा मुनाफा। हमारे भारत में आलू को सब्जियों में एक महत्वपूर्ण फसल माना जाता है, क्योंकि आलू का ज्यादातर उपयोग सब्जियों में किया जाता है। यदि बात करें इसकी खेती की तो पंजाब राज्य में 110.47 हजार हेक्टेयर में आलू का उत्पादन होता है और इसकी पैदावार 3050.04 हजार टन होती है। पंजाब में आलू की उत्पादकता भारत के बाकी राज्यों के मुकाबले में काफी ज्यादा है। यहाँ उत्पादित बीज आलू कई सारे राज्यों जैसे कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार आदि में भेजा जाता है। पंजाब राज्य में आलू के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में कपूरथला एवं जालंधर जनपदों का योगदान 50 प्रतिशत है। किसी भी फसल से गुणवत्तापूर्ण बीज और उच्च उत्पादन प्राप्त करने के लिए बीज का स्वास्थ्य काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि बीज एक महत्वपूर्ण निवेश है, जो उत्पादन की कुल लागत का 50% प्रतिशत है। बगैर प्रतिस्थापन के एक ही बीज का निरंतर इस्तेमाल करने से बीज की गुणवत्ता काफी कम हो जाती है। सीड प्लॉट तकनीक द्वारा मैदानी इलाकों में आलू का मानक बीज सफलतापूर्वक उत्पादित किया जा सकता है। इस विधि का प्रमुख उद्देश्य पंजाब में उस समय आलू की स्वस्थ फसल अर्जित करना है, जब तेल की मात्रा न्यूनतम हो अथवा वायरल रोग न फैल सकें।

कृषि विज्ञान केंद्र कपूरथला : सीड प्लॉट तकनीक से आलू बीज तैयार करने की विधि के बारे में

  • बीज आलू के उत्पादन के लिए ऐसे क्षेत्र का चयन करें जो रोग पैदा करने वाले जीवों/कवक जैसे ब्लाइट और आलू ब्लाइट से मुक्त हो।
  • बुआई के लिए प्रयोग किये जाने वाले बीज स्वस्थ एवं विषाणु रहित होने चाहिए तथा इन बीजों को किसी विश्वसनीय प्रतिष्ठान से ही खरीदें। कोल्ड स्टोर से आलू की छंटाई करें और रोगग्रस्त एवं सड़े हुए आलू को जमीन में गहराई तक दबा दें।
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  • कोल्ड स्टोर से लाये गये आलू को तुरंत न बोयें। बुवाई से 10-15 दिन पहले आलू को कोल्ड स्टोर से निकालकर हवादार स्थान पर ब्लोअर आदि रखकर या छाया में सुखा लें।
  • बुवाई से पहले आलू का उपचार करना अत्यंत आवश्यक है ताकि फसल को झुलसा एवं आलू झुलसा जैसे रोगों से बचाया जा सके। बीज को उपचारित करने के लिए आलू को सिस्टिवा 333 ग्राम/लीटर अथवा इसिस्टो प्राइम अथवा 250 मिली से 10 मिनट तक उपचारित करें। लिमिटेड मोनसेरॉन 250 एससी को 100 लीटर पानी में घोलकर 10 मिनट तक पानी में डुबाकर रखें।
  • संशोधित आलू को बुवाई तक अंकुरित होने के लिए 8-10 दिन तक छायादार एवं खुले स्थान में पतली परतों में रखें। अंकुरित आलू का इस्तेमाल करने से फसल का प्रदर्शन बेहतर और एक समान होता है। अधिक बीज के आकार के आलू प्राप्त होते हैं एवं उत्पादन ज्यादा होता है। आधार बीज तैयार करने के लिए न्यूनतम 25 मीटर का फासला आवश्यक है, जबकि प्रमाणित बीज के लिए 10 मीटर की दूरी जरूरी है।
  • फसल को अक्टूबर के पहले पखवाड़े में 50X15 सेमी के फासले पर बोएं। मशीन से बुवाई के लिए यह दूरी 65X15 या 75X15 सेमी रखें। एक एकड़ बुआई के लिए 40-50 ग्राम वजन के 12-18 क्विंटल आलू पर्याप्त होते हैं। एक एकड़ फसल के बीज से 8-10 एकड़ फसल बोई जा सकती है।
  • आलू की खुदाई के तीन सप्ताह के भीतर कभी भी मेटासिस्टॉक्स का छिड़काव न करें। खरपतवार नियंत्रण के लिए सैंकोर 70 डब्लूपी 200 ग्राम का छिड़काव खरपतवार लगने से पूर्व और पहली बार पानी देने के उपरांत करें।
  • बीज की फसल को खरपतवार एवं रोगों से मुक्त रखने के लिए फसल का निरीक्षण काफी आवश्यकता है। पहला निरीक्षण बुआई के 50 दिन उपरांत दूसरा निरीक्षण 65 दिन पर और तीसरा निरीक्षण 80 दिन पर करें।
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  • पहली सिंचाई बुआई के शीघ्र उपरांत हल्की करें। सिंचाई के दौरान इस बात का ख्याल रखें कि पानी गमलों से ऊपर न बढ़े। क्योंकि इस प्रकार गमलों की मिट्टी सूखकर सख्त हो जाती है और आलू की जड़ और वृद्धि पर प्रभाव डालती है। हल्की मिट्टी में 5-7 दिन के अंतराल पर तथा भारी मिट्टी में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
  • आलू की फसल को पिछेती झुलसा रोग से बचाना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह रोग कुछ ही समय में व्यापक रूप से फैल जाता है। फसल को काफी क्षति भी पहुंचाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए नवंबर के पहले सप्ताह में फसल पर इंडोफिल एम 45/कवच/एंट्राकोल 500-700 ग्राम प्रति एकड़ 250-350 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। इस छिड़काव को 7-7 दिन के अंतराल पर 5 बार दोहराएं। जहां रोग का प्रकोप ज्यादा हो, वहां तीसरा एवं चौथा छिड़काव रिडोमिल गोल्ड अथवा कर्जेट एम-8 700 ग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से 10 दिन के समयांतराल पर करें।
  • 25 दिसंबर से पूर्व जब बीज आलू का वजन 50 ग्राम से कम हो एवं तेल की संख्या प्रति 100 पत्तियों पर 20 कीड़े हों, तो बेल काट लें।
  • कटाई के उपरांत आलू को 15-20 दिनों तक भूमि पर ही पड़ा रहने दें, जिससे कि आलू का छिलका सख्त हो जाए। साथ ही, पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। खुदाई के बाद आलू को 15-20 दिन तक छायादार स्थान पर ढेर लगाकर रखें।
  • आलू को छांटकर क्षतिग्रस्त एवं कटे हुए आलू को अलग कर लें। बाद में, आलू को रोगाणुहीन थैलियों में ग्रेड करें और उन्हें सील कर दें। अगले वर्ष उपयोग के लिए इन आलूओं को सितंबर तक कोल्ड स्टोर में भंडारित करें। जहां पर कि तापमान 2-4º सेंटीग्रेड और आर्द्रता 75-80% हो।
  • इस विधि से उत्पादित आलू बीज रोग एवं विषाणु रोग से मुक्त होगा, जिससे अधिक उपज देने वाली एवं गुणवत्तापूर्ण फसल प्राप्त की जा सकेगी।
उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

आलू की खेती से किसान रबी सीजन में करते हैं, किसानों को इससे काफी मुनाफा अर्जित होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि खरीफ की फसलों की कटाई का समय आ चुका है। यूपी की उपजाऊ मृदा से हो रही पैदावार निरंतर विदेशों में लोकप्रियता अर्जित कर रही है। यहां पर उगने वाले आलू की मांग सात समुंदर पार भी हो रही है। प्रथम बार यूपी के आलू को अमेरिका के गुनाया में निर्यात किया गया है। किसानों को अपनी समझ और सूझबूझकर से खेती करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह की भी जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश के आलू का दबदबा विदेशों तक भी है। दरअसल, यूपी के आलू को पहली बार हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका भेजा गया है। यूपी के आलू का जलवा विदेशों में भी है। मीडिया खबरों के अनुसार, फार्मर ग्रुप (FPO) की सहायता से 29 मीट्रिक टन आलू अमेरिका के गुयाना में भेजा गया। बतादें, कि इसके साथ ही योगी सरकार का किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना भी साकार हो रहा है।

आलू का निर्यात अब सात समुंदर पार भी होगा

वाराणसी के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के उप महाप्रबंधक का कहना है, कि आलू को पहली बार व्‍यापारिक रूप से अमेरिका के गुयाना शहर निर्यात किया गया है। उन्‍होंने बताया है, कि निर्यात किए गए आलू को अलीगढ़ के एफपीओ से खरीद कर शीत गृह में पैक किया गया। 29 मीट्रिक टन आलू समुद्र मार्ग के जरिए गुयाना पहुंचेगा।

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अलीगढ़ में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की मुहिम

बतादें, कि इसी कड़ी में अलीगढ़ के किसान उद्यमी के साथ-साथ निर्यातक भी बन रहे हैं। अलीगढ़ में आलू के उत्पादन को मंदेनजर रखते हुए एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी अलीगढ़ में कृषि निर्यात केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है। बतादें, कि यदि अलीगढ़ जनपद में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खुलता है, तो जनपद के आसपास के हजारों लोगों को रोजगार का अवसर भी मिलेगा।

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योगी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिचौलियों को अलग करके किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में एफपीओ के जरिए से किसानों को निर्यातक बनाया जा रहा है। प्रदेश में योगी सरकार एफपीओ एवं किसान समूहों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तरफ प्रोत्साहन देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। किसानों को विदेशों में निर्यात कर बेहतरीन आमदनी देने वाली फसलों की पैदावार करनी चाहिए। किसान केवल पारंपरिक फसलों पर ही आश्रित ना रहें।
पंजाब के इन क्षेत्रों में कुल आलू उत्पादन का 80 प्रतिशत बीज के लिए उपयोग होता है

पंजाब के इन क्षेत्रों में कुल आलू उत्पादन का 80 प्रतिशत बीज के लिए उपयोग होता है

पंजाब के कपूरथला और जालंधर में होने वाले आलू का सर्वाधिक उपयोग बीजों के लिए किया जाता है। आलू की ये किस्में कुफरी पुखराज और ज्योति हैं। भारत में इनकी सबसे अधिक खरीदारी कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में की जाती है। विश्व में आलू उत्पादन के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर आता है। परंतु, यदि हम खपत की बात करें, तो भारत में ही इसका काफी भाग खाने में उपयोग कर लिया जाता है। परंतु, आज हम आपको आलू की पुखराज और ज्योति किस्म के विषय में बताने जा रहे हैं, जिसकी मांग भारत ही नहीं, बल्कि विश्व भर में है। हम बात कर रहे हैं, पंजाब के कपूरथला-जालंधर जनपद में हो रहे आलू के विषय में। दरअसल यहां होने वाले आलू की मांग इसलिए ज्यादा है, क्योंकि इसका बीज उत्पादन एवं गुणवत्ता के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाने वाला बीज है। 

यहां के समकुल आलू उत्पादन का 85 फीसद बीजों के लिए होता है

कपूरथला और जालंधर में होने वाले इस आलू की बात करें, तो इसकी कुल पैदावार का 85 फीसद तो सिर्फ बीजों के लिए ही निकाल दिया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन क्षेत्रों में समकुल
आलू उत्पादन का 85 प्रतिशत किसान बीज के लिए ही निकाल देते हैं। इसकी प्रमुख वजह यह है, कि आलू की तुलना में उसके बीजों को बेचने पर किसानों का मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है। भारत के बहुत से किसान तो इन बीजों की बुकिंग यहां के किसानों से फसल के काटने से पहले ही करा लेते हैं।

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सबसे ज्यादा पुखराज और ज्योति किस्म की खेती की जाती है

आलू के लिए पुखराज और ज्योति की किस्में पंजाब के दोआब क्षेत्र की सबसे ज्यादा बोई जाने वाली किस्मों में सबसे खास हैं। इसकी मुख्य वजह है, कि यह किस्में दोआब क्षेत्र में सबसे ज्यादा देखी जाती हैं। इसके होने वाले बीजों के द्वारा जो उत्पादन मिलता है, वो काफी ज्यादा होता है। यही कारण है, कि इन कि स्मों की खेती इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा होती है। 

जानें कितने हेक्टेयर में इसकी खेती होती है

पंजाब में आलू की इस फसल को जनपद में बहुत बड़ी मात्रा में बोया जाता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इसकी जनपद में लगभग 10000 हेक्टेयर में बुवाई की जाती है। वहीं, यदि हम इसके उत्पादन की बात करें, तो तकरीबन 2 लाख मैट्रिक टन आलू की उपज की पैदावार जनपद में प्रति वर्ष होती है।

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इन राज्यों में सप्लाई की जाती है

कपूरथला में पैदा होने वाले इस आलू को भारत के विभिन्न राज्यों द्वारा काफी पसंद किया जाता है। परंतु, यदि हम इसकी सबसे अधिक मांग की बात करें, तो यह आलू सर्वाधिक कर्नाटक, पश्चिम बंगाल एवं दिल्ली के द्वारा खरीदा जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तराखंड और कुछ मात्रा में उत्तर प्रदेश के अंदर भी खरीदा जाता है।